राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 236

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

हे श्रीराधिके, आप हमारी प्रान सर्वस्व हौ, आप भलें ही अपने कूँ साधारन नारी मानौ, परंतु आपकी पवित्र कीर्ति कूँ देवांगना हू नमस्कार करैं हैं, और लक्ष्मी, पार्वती आदि हू पके गुनन की तुलना नहीं करि सकैं हैं।
श्रीजी- हे मधुरभाषिनी! तुम काहे कूँ ऐसी प्रसंसा करौ हो?
देनांगना- नहीं, नहीं, मैं मिथ्या नहीं कहूँ हूँ। कैलास पै हैमवती सभा में मैंने आपके गुनन की बड़ी प्रसंसा सुनी है।
(दोहा)

गुन सुनि कैं मन हठ गह्यौ, कब जाऊँ उन तीर।
सो हठ अब पूरन भयौ, तृषित मिल्यौ ज्यौं नीर।।

हे लाड़िली, गुन-स्रवन सौं आपके दरसन की बड़ी अभिलाषा भई, सो आज पूरन भई। परंतु-
(दोहा)

तुव दरसन के होत ही भयौ हृदय में ताप।

आपके दरसन के होत ही मेरे हृदय में अत्यंत बेगजुक्त ताप भयौ, परंतु वा ताप सौं हू मेरी अंतरात्मा अत्यंत कठोर होयबे के कारन पिघली नहीं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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