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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीप्रेम-सम्पुट लीलाहे श्रीराधिके, आप हमारी प्रान सर्वस्व हौ, आप भलें ही अपने कूँ साधारन नारी मानौ, परंतु आपकी पवित्र कीर्ति कूँ देवांगना हू नमस्कार करैं हैं, और लक्ष्मी, पार्वती आदि हू पके गुनन की तुलना नहीं करि सकैं हैं।
हे लाड़िली, गुन-स्रवन सौं आपके दरसन की बड़ी अभिलाषा भई, सो आज पूरन भई। परंतु-
आपके दरसन के होत ही मेरे हृदय में अत्यंत बेगजुक्त ताप भयौ, परंतु वा ताप सौं हू मेरी अंतरात्मा अत्यंत कठोर होयबे के कारन पिघली नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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