राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 234

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

बहिन! तुम बड़ी चतुर हौ, तुम्हारे समान बड़भागी और कोई नहीं है। बंसीबट के बिहार-दरसन सों ही तुम्हारे हृदय में अति बलवान उत्कंठारूप कृपान ने प्रगट होय मन एवं इंद्रिय छिन्न-भिन्न करि दीनीं। तुम्हारौ मन हू याही सौं स्थिर नहीं है। और ये प्रताप मुरली-नाद कौ ही है।
(दोहा)

मुरली सुनि मम नाथ की, जौ छाँड्यौ निज धाम।
कहा कठिन यामें कियौ, सखि! अचरज को काम।।
उत्कंठित लक्ष्मी रहै जाकी धुनि सुनि कान।
वारत प्रीतम चरन पै अपनौ तन मन प्रान।।

हे देवांगने, यदि आप बंसी-धुनि सौं मोहित है कैं अपनौ काम धाम तजि मेरे प्रान-प्रीतम के समीप आई हौ तो या में कोई आस्चर्य नहीं है। आपके वाक्यन ते ही यह तो सिद्ध है कि वा धुनि कूँ सुनि कैं लक्ष्मी आदि हू ताकी आकांक्षी हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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