विषय सूची
श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीप्रेम-सम्पुट लीलाबहिन! तुम बड़ी चतुर हौ, तुम्हारे समान बड़भागी और कोई नहीं है। बंसीबट के बिहार-दरसन सों ही तुम्हारे हृदय में अति बलवान उत्कंठारूप कृपान ने प्रगट होय मन एवं इंद्रिय छिन्न-भिन्न करि दीनीं। तुम्हारौ मन हू याही सौं स्थिर नहीं है। और ये प्रताप मुरली-नाद कौ ही है।
हे देवांगने, यदि आप बंसी-धुनि सौं मोहित है कैं अपनौ काम धाम तजि मेरे प्रान-प्रीतम के समीप आई हौ तो या में कोई आस्चर्य नहीं है। आपके वाक्यन ते ही यह तो सिद्ध है कि वा धुनि कूँ सुनि कैं लक्ष्मी आदि हू ताकी आकांक्षी हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज