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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला
- पंचम अध्याय
- समाजी- (तुक)
- सुनि पिय के रस-वचन सबनि गँसि छाँड़ि दयौ है।
- बिहँसि आपने उर सौं लाल लगाय लयौ है।।
- कल्पबृच्छ जड़ सुनियत वह चिंतित फलदायक।
- यह ब्रजराज-कुमार सबै सुखदायक नायक।।
- कोटि कलपतरु लसत बसत पद-पंकज छाहीं।
- कामधेनु पुनि कोटि-कोटि बिलुठत रज माहीं।।
- सो पिय भये अनुकूल, तूल कोउ भयो न है अब।।
- निरवधि सुख को मूल सूल उनमूल करी सब।।
- पुनि आयहु तहाँ सुरतरु तर श्रीगिरिबर धर।
- बिलुलित कुंडल अलक तिलक झुकि झाईं लेहीं।।
- आरंभत अद्भुत सुरास वह कमल चक्र पर।।
- एक काल ब्रजबाल लाल सब चढ़े जोर कर।
- नमित न इत-उत होय सबै नृत्यत बिचित्र बर।।
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