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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला
- पुनि दरपन सम अवनि रवनि ता पर छबि देहीं।
- सबके अंसन धरी साँवरे बाँह सुहाई।
- एकहि मूरत लसत लाल आलात की नाईं।।
- कमल करनिका मध्य जु स्यामा-स्याम बनी छबि।
- दोय-दोय गोपिन मध्य जु मोहन लाल बने फबि।।
- मूरति एक अनेक देख अद्भुत सोभा अस।
- मंजु मुकुर मंडल मधि बिनु आनि परत जस।।
- सकल तियन के मध्य साँवरी पिय सोभित अस।
- रत्नावलि मधि नीलमनि अदभुत झलकै जस।।
- नव मरकतमनि स्याम, कनकमनि-गन ब्रजबाला।
- बृंदाबन कौं रीझि मनहुँ पहिराई माला।।
- नूपुर, कंकन, किंकिनि, करतल मंजुल मुरली।
- ताल-मृदंग-उपंग-चंग एकै सुर जुरली।।
- मृदुल मुरज-टंकार ताल-झंकार मिली धुनि।
- मधुर जंत्र के तार भँवर-गुंजार रली पुनि।।
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