राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 208

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

अर्थ- हे गोपियौ! तुम ने मेरे ताईं लोकमर्यादा, वेदमार्ग, सगे-संबंधीन कूँ छोड़ि दियौ है। ऐसी स्थिति में तुम्हारी मनोवृत्ति और कहूँ न जाय, अपने सौंदर्य और सुहाग की चिंता न करिबे लगै, निरंतर मोही में लगी रहै, याही सौं परोच्छ रूप ते प्रेम करती भयौ ही छिप्यौ हौ, यासौं तुम मेरे प्रेम में दोष मत निकारौ।
(तुक)

सकल बिस्व अपबस करि मो माया सोहति है।
प्रेममई तुम्हरी माया मो मन मोहति है।।
कोटि कलप लगि तुम प्रति उपकार करौं जौ।
हे मनहरनी तरुनी! उरिनी नाहिं होउँ तौ।।
तुम जो करी सो कोउ न करै, सुनु, निवलकिसोरी।
लोक-बेद की सुदृढ़ सृंखला तृन सम तोरी।।
न पारयेऽहं निरवद्यसंयुजां स्वसाधुकृत्यं बिबुधायुषापि वः।
या माभजन् दुर्जरगेहश्रृंखलाः संवृश्च्य तद् वः प्रतियातु साधुना।।22।।

अर्थ- हे ब्रजदेबियौ, तुमने मेरे लियें गृहस्थ की बेरी कौं तोरि दियो है, जाकूँ बड़े-बड़े योगी हू नहीं छोड़ि सकैं हैं। मोते तुम्हारौ यह मिलन, आत्मिक संजोग सर्वथा निर्मल और निर्दोष है। यदि देवतान की सी आयु मैं पाय लऊँ तौ हू आपके उपकार कौ बदलौ नाँय दै सकूँ। यदि आप ही अपने मुखन सौं यों कहो- कृष्ण! तुम भले-बुरे जैसे हू हौ हमारे ही हौ, तब भलें ही या रिन सौं छूटूँ। नहीं, सौ जन्म ताईं मैं आपके या रिन सौं नहीं छूट सकूँ हूँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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