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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीप्रेम-प्रकाश-लीलाश्रीकृष्ण- हे किसोरी जू! आज आप कूँ जल भरिबे कूँ बहुत देर भई।
प्यारे! अब या लीला कूँ यही समाप्त करि देउ। ब्रज की लुगाइन नें हमारी और आपकी बुराई करनौ ही जीवन कौ आदर्श बनाय राख्यौ है। सुनि-सुनि कैं हृदय जर्जर है गयौ है। कान बहिरे भए जाएँ हैं। यासौं या मृत्युलोक कौ जीवन असह्य है गयो है। काहू दिनाँ या देह कूँ जमुना में डुबोय दऊँगी, यही मनमें आवै है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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