राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 21

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला

श्रीकृष्ण- प्रिये! धैर्य धारन करौ, अबहीं तौ प्रथम चरन है। अबहीं हमने जीवन-समूह के कल्याणार्थ तौ कछू कियौ ही नहीं है। अब कार्य प्रारंभ भयो है, सो आप सब जानौ हौ। आपनें गोलोक में जो सुदामा गोप कूँ श्राप दियौ और सुदामा नें आप कूँ मोते सौ बरस अलग रहिवे की बात कही, सोहू पूरी करनी हीं परैगी। आपनें ही या लीला की रचना करी है, अब याकूँ समयानुसार आप ही पूरी करौगी। यासौं जानि-बूझि भोरी मत बनौ। मेरे ऊपर सदैव ऐसी कृपा राखियौं, जासौ मैं सब कार्य में सफल होतौ रहूँ और याहू बात कौ आज निर्नय है जायगौ। अब आप घर पधारौ।

(श्रीजी अपने घर पधारैं)

श्रीकृष्ण- हाय! मेरे ही कारन किसोरी जी कूं इतनौ सहनौ परै है। जो सिव-बिरंचि-अंगिरादिकन के ध्यान में नहीं आवैं, वे ही मोते मिलिबे कूँ जमुना-जल के मिल सीस पै भारी गागर लैकैं नंगे पायन पधारैं हैं! प्यारो, यह कान्ह आपकौ अपराधी है, हे दयामयी, मेरे अपराध कूँ छमा करौ।

(श्रीकृष्ण कौ मूर्च्छित हौनौं) (पटापेक्ष)

(श्रीराधा अपने कक्ष में बैठी फूल-माला बनावैं, सामने श्रीकृष्ण कौ चित्र रहै)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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