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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला
- (रास-प्रारम्भ)
- बिहँसि मिले नँदलाल निरखि ब्रजबाल बिरह-बस।
- जदपि आतमाराम रमत भये परम प्रेम-रस।।
- बिहरत बिपिन बिहार उदार नवल नँदनंदन।
- नव कुमकुम घनसार चारु चरचित तन चंदन।।
- गोपीजन-मन-मोहन मोहन लाल बने यौं।
- अपनी द्युति के उजरे उडुपति घन खेलत ज्यौं।।
- कुंजनि कुजनि डोलत मनु घन तैं घन आबत।
- लोचन तृषित चकोरनि कें चित चौंप बढ़ावत।।
- सुभग सरित के तीर धीर बलबीर गये तहँ।
- कोमल मलय समीर छबिनि की महा भीर जहँ।।
- कुसुम-धूरि-धूँधरी कुंज छबि पुंजनि छाई।
- गुंजत मंजु अलिंद, बेनु जनु बजति सुहाई।।
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