राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 151

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

सखी-
अधर सुधा के लोभ भईं हम दासि तिहारी।
ज्यौं लुब्धीं पद कमला नवला चंचल नारी।।
जो न देहो अधरामृत, सुनिहौ हे सुंदर हरि।
करिहैं यह तन भस्म, बिरह-पावक में परि-परि।।
पुनि पिय-पदवी पाय, बहुरि धरिहैं सुंदर अँग।
निधरक ह्वै यह अधरामृत पीबत फिरहैं सँग।।

हे प्यारे! ‘अन्ते मतिः सा गतिः।’ हे प्यारे! हम आपमें चित्त दैं कैं मरैंगी तौ काहू जन्म में तौ आप अवस्य ही मिलौगे!
ठाकुरजी- हे गोपियौ! ऐसैं मति कहौ, आऔ! रास करैं।
(सब सौं मिलैं! श्रीजी पधारैं)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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