राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 141

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

Prev.png

श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

सखियाँ-

(श्लोक)

सद्वंशभूरकटिला सहजैकपर्वा सारान्विता च मुरली न हि दुष्यतीयम्।
अस्याः कलैर्बत जनं जनमेव नाम ग्राहं यदाऽऽह्वयसि नः स तवैव दोषः।।

हे प्यारे! यह बंसी कौ दोष नहीं है। कारन, एक तौ यह अच्छे बाँस कुल में पैदा भई है, सूधी है। बीच में कोई ग्रंथि (गाँठ) या कैं नहीं है। और ध्वनि रूप सार बस्तु सौं जुक्त है। या सौं यह बंसी सर्वथा दोष दैबे जोग्य नहीं है। आपने ही हममें सैं एक-एक कौ नाम लै-लै कैं आह्वान् करयौ, सो आपकौ ही दोष है।

ठाकुरजी-

(श्लोक)

मुरली मरुदाभिमुख्यमात्रे ध्वनतीयं न मयैव वाद्यमाना।
स्वयमाह्वयतीयमिच्छया वः सकलानामपि नाम नाम वेत्ति।।

हे गोपियौ! पवन के आवेश तैं मुरली स्वयं ही बज उठै हैं; मैं नहीं बजाऊँ हूँ। और जब याकी इच्छा होय, तुम सबन कूँ बुलाय लेय है। कारन, यह तुम्हारे नामन कूँ जानै है; यासौं या बंसी कौ ही दोष है, मेरौ नहीं।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः