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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला
(श्लोक)
हे प्यारे! यह बंसी कौ दोष नहीं है। कारन, एक तौ यह अच्छे बाँस कुल में पैदा भई है, सूधी है। बीच में कोई ग्रंथि (गाँठ) या कैं नहीं है। और ध्वनि रूप सार बस्तु सौं जुक्त है। या सौं यह बंसी सर्वथा दोष दैबे जोग्य नहीं है। आपने ही हममें सैं एक-एक कौ नाम लै-लै कैं आह्वान् करयौ, सो आपकौ ही दोष है।
(श्लोक)
हे गोपियौ! पवन के आवेश तैं मुरली स्वयं ही बज उठै हैं; मैं नहीं बजाऊँ हूँ। और जब याकी इच्छा होय, तुम सबन कूँ बुलाय लेय है। कारन, यह तुम्हारे नामन कूँ जानै है; यासौं या बंसी कौ ही दोष है, मेरौ नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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