राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 140

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

(श्लोक)

बंशीकलेन वडिशेन झषीरिवास्मानाकृष्य सद्गुणजुषा सुरसाभिषेण।
शूलकरोषि परुषोक्तिशलाकयैवमाविध्य किं पुनरुपेक्षणवीतिहोत्रे।।

हे स्याम सुंदर! जैसै धीमर बडिस में चून की गोली लगाय मच्छीन कूँ अपने पास खैंचि कैं तीखी सलाई सौं बींधि कैं अग्नि में तपावै हैं, ऐसैं ही आपने हू या बंसी में रस रूप गोली लगाय हम गोपीन कूँ पास बुलाय बचन रूप तीखी सलाई में बींधि अब उपेच्छा रूप अग्नि में तपानौ प्रारम्भ कियौ है।

ठाकुरजी-


(श्लोक)

अहमात्ममुदामुदारभावैर्मुरलीनादविनोदमातनोमि।
यदितो विकलाः कुलांगनाः स्युः सकला एव तदत्र मे क्व दोषः।।

हे गोपियौ! मैं तौ अपने ही आनंद भाव में मुग्ध होय कैं अपने ही बिनोद सौं मुरली बजाऊँ हूँ। यदि या मुरली-धुनि सौं तुम ब्रज गोपांगना बिकल है जाऔ तौ या में मेरौ कहा दोष है? अवस्य ही यह तौ मुरली कौ दोष है!

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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