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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला(मूछत अवस्था-सखी संभारै)
‘वा दिनां मैंने तुम्हारे मुख ते कृष्न-नाम सुन्यौ, सुनतहीं मेरौ बिबेक जातौ रह्यौ। मैंने यह नहीं सोच्यौ कि यह कृष्न कौन है; तुरंत मन ही मन, अपनौ मन, प्राण, जीवन, सरबस्व उन कूँ समर्पन करि बैठी। कृष्न-नाम कौ मधुपान करि बावरी है गई। सोच्यौ कि वे मिलैं, चाहें न मिलैं, कृष्न-नाम के सहारें जीवन समाप्त करि दऊँगी। किंतु वाही दिनाँ तुम नें चित्र दिखायौ। चित्र छबि, बस एक ही बार देख सकी। देखत ही वह स्याम-वरन मेघद्युति पुरुष मेरे प्रानन में समाय गयौ। फिर इतने ही में बंसी बजी, बंसी की धुनि सुनि मेरौ ममन विक्षिप्त है गयौ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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