राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 134

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

हम आपके चरन कमलन की सेविका हैं, यातैं आप हमरौ परित्याग मत करौ। जैसैं भगवान् नारायन संसार-बंधन सौ छूटिवै की इच्छा राखिबेवारे पुरुष कौ मनोरथ पूर्ण करैं हैं, वैसें ही आप हू हमारे भीतर जागृत भई बिसेष क्रीड़ा की इच्छा कूँ, आपकी चरनसेवा वासना कूँ, जो प्रेम-परिपाक की बिलास-स्वरूपा है एवं संपूर्ण पुरुषार्थन की सार-सर्वस्वा है, पूर्ण करि कैं हमें कृतार्थ करौ।

यत्पत्यपत्यसुहृदामनुवृत्तिरंग स्त्रीणां स्वधर्म इति धर्मविदा त्वयोक्तम्।
अस्त्वेवमेतदुपदेशपदे त्वयीशे प्रेष्ठो भवांस्तनुभृतां किल बन्धुरात्मा।।

हे प्यारे! आप सब धर्मन के रहस्य कूँ जानौ हौ, आपने पति-पुत्र एवं अन्य स्वजनन की जथायोग्य सेवा करनौ ही धर्म बतायौ सो उत्तम है; परंतु आपकूँ उपदेस दैनौ तो तब उचित होवतौ, जब हम आपकूँ बक्ता के सिंहासन पै बैठाय कैं धर्म पूछतीं जब हमनै को, प्रस्न और जिग्यासा नायँ करी, तब आपकौ यह उपदेस आप उपदेस करिबे वारे के प्रति हमारी ओर सौं चरितार्थ हौ जाय; कारन, आप ईस्वर हौ- नहीं तुम्ह तौ प्रानिमात्र के प्रियतम, बंधु और आत्मा हौ। जब सब देहधारीन की आत्मा आप ही हौ, तब पति पुत्रादि में हूँ आत्मारूप सों आप ही स्थित हौ- अतः उनकी देह में हू सेव्य तुमहीं हौ। वे ही तुम जब साक्षात् हमैं प्राप्त हौ, तब एकमात्र तुम्हारी सेवा ही उन सबकी सेवा है; तुम्हारे उपदेस की साँची चरितार्थता तुम्हारी सेवा सौं ही होय है।

कुर्वन्ति हि त्वयि रतिं कुशलाः स्व आत्मन।
नित्यप्रिये पतिसुतादिभिरार्तिदैः किम्।
तत्रः प्रसीद परमेश्वर मा स्म छिन्द्या
आशांभृतां त्वयि चिरादरविन्दनेत्र।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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