राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 135

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

हे प्रियतम! आप ही सबके परम बंधु, आत्मा और प्रेमास्पद हौ; यातैं चतुर पुरुष आप ही सौं प्रेम करैं हैं। संसार के पति-पुत्रादिक तौ अपनी ममता में फाँसि कैं दुख दैबे वारे ही हैं। उनसूँ हमारौ कहा प्रयोजन है! हे कमलनैन! चिरकाल सौं हमने सेवाभिलाष रूप लता लगायी राखी है, ताकूँ आप निठुराई सौं छेदन मत करौ।

चित्तं सुखेन भवतापहृतं गृहेषु यन्निर्विशत्युत करावपि गृह्यकृत्ये।
पादौ पदं न चलतस्तव पादमूलाद्यामः कथं व्रजमथो करवाम किं वा।।

हे प्यारे! हम लोगन कौ चित्त अब तक घर के काम-काजन में लगि रह्यौ हतौ, सो तौ आपने हरन करिकैं लूटि लियौ और हमारे हाथन कूँ बाँधि लिये। हमारे पाँव हूँ अब आपके चरन तल सौं दूर जायबे के लिए तैयार नाँय हैं, जापै आप जाऔ-जाऔ की धुनि लगावौ हौ। तब आप ही बताऔ, हम कैसैं ब्रज कूँ बगद कैं जायँ और वहाँ जाय कैं हू कहा करैं।

सिञ्चांग नस्त्वदधरामृतपूरकेण हासावलोककलगीतजहृच्छयाग्निम्।
नो चेद् वयं विरहजाग्न्युपयुक्तदेहा ध्यानेन याम पदयोः पदवीं सखे ते।।

हे प्यारे! आपकी मधुर मुसक्यानयुक्त प्रेम-सुधामयी दृष्टि और मुरली की मधुरतम तान नें हमारे हृदयन में आपके प्रेम की अग्नि धधकाय दीनी है। वह हम कूँ भस्म किये दै रही है। हे सखा! या अग्नि कूँ आप अपने धरामृत-रस सौं सींचि कै बुझावौं; नहीं तौ वह हमारे सब शरीर कूँ स्वाहा करि कैं हमैं जोगीन की-सी गति दै दैगी और हम ध्यान के द्वारा आपकी चरन-रज कूँ प्राप्त है जायँगी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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