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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीलाहे प्यारे! आप यौं मति जानियौं कि ये सब बातैं यौं ही रहि जायँगी। इन सब बातन के पोथा बनैंगे और सभा में वक्ता बाँचि कै स्त्रोतान कूँ सुनावैंगे, तब आप कौ बड़ौ अपजस होयगौ। आप कूँ कोई भलौ न कहैगौ, यासौं माथौ नीचौ कियौ है।।14।।
हे सर्वसमर्थ प्रभो! हे हमारे प्रानबल्लभ! आप हमारे सब भावन कूँ जानिबेवारे हौ। हे स्वच्छंदबिहारी! आप परम कोमल सुभाव के होयके हूँ या प्रकार के निष्ठुरताभरे बचन क्यौं बोलौ हो, यह तौ आपकूँ सोभा नायँ देय है। हमने धर्म, लज्जा पति -स्वजनादि समस्त विषयन कूँ सर्वथा त्यागि कैं आपके चरन कमल की भजना करी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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