राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 12

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला

श्रीजी-

पद (राग देश, तीन ताल)

स्याम, सखि! नीकैं देखे नाहीं ।
चितवतहीं लोचन भरि आए, बार-बार पछिताहीं ।।
कैसैंहूँ करि इकटक राखत नैंकहि में अकुलाहीं ।
निमिष मनौं छबि पर रखवारे ताते अतिहि डराहीं।।
कहाँ करूँ, इन कौ कहा दूषन, इन अपनी सी कीनी ।
सूर स्याम-छबि पर मन अटक्यौ, उन सब सोभा लीनी ।।

हाय-हाय! मेरे हृदय में तौ अग्निकुंड है, धक-धक करती अग्नि जरि रही है। परंतु मैं क्यों नहीं जरूँ हूँ? हाँ, स्याम-जलधर की वर्षा है रही है।
(वेणुनाद सौं चौंकि कैं)
हें, यह काहे की धुनि है?
सखी- प्यारी! यह बंसी ध्वनि है।
श्रीजी- हाय! बंसी-ध्वनि है कि अमृत निर्झर, सुधा प्रवाह?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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