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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला
पद (राग देश, तीन ताल)
हाय-हाय! मेरे हृदय में तौ अग्निकुंड है, धक-धक करती अग्नि जरि रही है। परंतु मैं क्यों नहीं जरूँ हूँ? हाँ, स्याम-जलधर की वर्षा है रही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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