मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास पृ. 98

मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास

15. अनिर्वचनीय प्रेम

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अनन्तरस को प्रवाहित करने वाली प्रेम रूपी नदी के दो तट हैं- नित्यमिलन और नित्यविरह। नित्यमिलन से प्रेम में चेतना आती है, विशेष विलक्षणता आती है, प्रेम का उछाल आता है और नित्यविरह से प्रेम प्रतिक्षण वर्धमान होता है अर्थात् अपने में प्रेम की कमी मालूम देने पर ‘प्रेम और बूढ़े, और बूढ़े’ यह उत्कण्ठा होती है।

अरबरात मिलिबे को निसिदिन,
मिलेइ रहत मनु कबहुँ मिलै ना।

जैसे धनी आदमी में तीन चीजें रहती हैं-1. धन और 2. धन का नशा अर्थात् अभिमान और 3. धन बढ़ने की इच्छा। ऐसे ही प्रेमी में तीन चीजें रहती हैं- 1. प्रेम 2. प्रेम की मादकता, मस्ती और 3. प्रेम बढ़ने की इच्छा। धनी आदमी में जो ‘धन और बढ़े, और बढ़े’- यह इच्छा रहती है, वह लोभरूपी दोष के बढ़ने से होती है। परन्तु प्रेमी में जो ‘प्रेम और बूढ़े, और बढ़े’- यह इच्छा रहती है, वह अहंता-ममता रूपी दोषों के मिटने से होती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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