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मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास
2. कामना, जिज्ञासा और लालसा
शरीर-संसार की इच्छा के कई नाम हैं; जैसे-कामना, आशा, वासना, तृष्णा आदि। अमुक वस्तु मिल जाय, धन मिल जाय, भोग मिल जाय, कुटुम्ब मिल जाय, घर मिल जाय-ये सब इच्छाएँ सच्ची नहीं हैं। ये इच्छाएँ सभी योनियों में होती हैं। मनुष्य की इच्छाएँ और होती हैं, कुत्ते की इच्छाएँ और होती हैं, सिंह की इच्छाएँ और होती हैं। ऐसे ही गाय-भैंस, भेड़-बकरी, गधा, ऊँट आदि की अलग-अलग इच्छाएँ भी बदलती रहती हैं। वृक्षों को खाद तथा पानी की इच्छा होती है। ये मिलें तो वृक्ष हरे हो जाते हैं। ये न मिलें तो वे सूख जाते हैं। परन्तु जिज्ञासा और लालसा-ये दो इच्छाएँ केवल मनुष्य शरीर में ही होती हैं, अन्य शरीरों में नहीं होतीं। कारण कि अन्य शरीर भोग योनियाँ हैं। उनमें केवल भोगने की इच्छा है। जिज्ञासा और लालसा असुरों-राक्षसों में नहीं होती, भूत-प्रेत-पिशाच में नहीं होती। यह देवताओं में हो सकती है, पर उनमें भी भोग भोगने की इच्छा मुख्य रहती है। जैसे-मनुष्य लोक में ज्यादा धनी लोगों में भोग भोगने की और धन का संग्रह करने की इच्छा मुख्य रहती है तो वे भगवान् में नहीं लगते। कलकत्ते के एक धनी आदमी से मैंने पूछा कि तुम्हारे पास इतने रूपये कमाकर क्या करोगे? उसने बड़ी सज्जनता से उत्तर दिया कि ‘स्वामीजी! इसका उत्तर हमारे पास नहीं है।’ केवल एक ही धुन है-धन कमाओ, धन कमाओ। उस धनका करेंगे क्या-इस तरफ ख़याल नहीं है। पूरा धन भोग तो सकते नहीं; अतः छोड़कर मारना पड़ेगा। केवल भोगों की इच्छा रखने वाले मनुष्य कहलाने योग्य नहीं हैं। मनुष्य कहलाने योग्य वही हैं, जिसमें अपने स्वरूप की जिज्ञासा और परमात्मा की लालसा है। अपने स्वरूप को जानने की और परमात्मा को प्राप्त करने की इच्छा मनुष्य में ही हो सकती है। यह सामर्थ्य मनुष्य में ही है। परन्तु इसको छोड़कर जो भोग और संग्रह में लगे हुए हैं, उनमें मनुष्यपना नहीं है, प्रत्युत पशुपना है। भागवत में इसको पशुबुद्धि कहा गया है- ‘पशुबुद्धिमिमां जहि’[1]मैं कौन हूँ? मेरा मालिक कौन है? यह जानने की इच्छा मनुष्य बुद्धि है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 12/5/2।
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