विषय सूची
मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास
2. कामना, जिज्ञासा और लालसा
इस दुनियाँ में एक अँधेरा, सबकी आँख में जो छाया । - यह जिज्ञासा मनुष्य में ही हो सकती है। पशुओं में गाय बड़ी पवित्र है। मल और मूत्र किसी का भी पवित्र नहीं होता, पर गाय का गोबर और गोमूत्र भी पवित्र होता है! पवित्रता के लिये गोमूत्र छिड़का जाता है, गोबर का चौका लगाया जाता है। ऐसी पवित्र होने पर भी गाय में यह जानने की शक्ति नहीं है कि मेरा स्वरूप क्या है? परमात्मा क्या है? इसको मनुष्य ही जान सकता है। मनुष्य जन्म के सिवाय और कोई जानने की जगह नहीं है। यह मौका मनुष्य जन्म में ही है। इस जन्म में ही हम अपने-आप को जान सकते हैं, भगवान् को प्राप्त कर सकते हैं, भगवान् में प्रेम कर सकते हैं। अगर मनुष्य शरीर में आकर यह काम नहीं किया तो मनुष्य शरीर निरर्थक गया! कामनाएँ सदा बलवती रहती हैं, पर जिज्ञासा और लालसा सदा एक ही रहती है, कभी बदलती नहीं। कारण कि ये दोनों खुद की हैं। खुद कभी बदलता नहीं, शरीर बदलता रहता है। ऐसे ही इच्छाएँ बदलती हैं, भाव बदलते हैं, रहन-सहन बदलता है। जो बदलता है, वह हमारा स्वरूप नहीं है। इसलिये शुकदेव जी ने राजा परीक्षित् को कहा-
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भा० 12/2/5
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज