मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास पृ. 6

मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास

1. मेरे तो गिरधर गोपाल

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तेरे भावै कछु करौ, भलो बुरो संसार ।
‘नारायन’ तू बैठि के, अपनौ भवन बुहार ।।

हमारा मतलब केवल भगवान् से है। हम अच्छे हैं तो उनके हैं, बुरे हैं तो उनके हैं-

जौ हम भले बुरे तौ तेरे ।
तुम्हैं हमारी लाज-बड़ाई, बिनती सुनि प्रभु मेरे ।।[1]

संसार में तो एक तिनका भी हमारा नहीं रहेगा, नहीं रहेगा, नहीं रहेगा। अपना है ही नहीं तो कैसे रहेगा? संसार का प्रतिक्षण आपसे वियोग हो रहा है। जन्म लेने के बाद जितने वर्ष बीत गये, उतने वर्ष तो आप मर ही गये और बाकी जो दिन बचे हैं, वे भी जाने वाले हैं। एक भगवान् के सिवाय अपना कुछ नहीं है। इसलिये भगवान् को पुकारो कि हे प्रभो! हे मेरे प्रभो! मेरा कोई नहीं है, केवल आप ही मेरे हो, और कोई मेरा नहीं है। फिर मौज हो जायगी, आनन्द हो जायगा! मेरे तो भगवान् हैं- इस बात को लेकर नाचने लग जाओ, कूदने लग जाओ कि आज हमारा काम हो गया! सब कुछ भगवान के चरणों में अर्पण कर दो। स्वप्न में भी किसी की गुलामी मत करो। हृदय से गुलामी निकाल दो। नाचने लग जाओ कि बस, आज तो हम निहाल हो गये! कोई पूछे कि अरे! क्या मिल गया? तो कहो कि जो मिलना चाहिये था, वह मिल गया। वह परमात्मा स्वतः सबको मिला हुआ है, सबके भीतर विराजमान है। वह हमारा अपना है। और किसी से हमें कोई गरज नहीं, किसी की आवश्यकता नहीं, किसी की परवाह नहीं। कोई राजी रहे तो मौज, नाराज हो जाय तो मौज। हम किसी को दुःख नहीं देते, किसी के विरुद्ध कुछ करते नहीं, स्वप्न में भी किसी का अहित नहीं चाहते, फिर कोई राजी रहे या नाराज, यह उसकी मरजी। हमारा किसी से कोई मतलब नहीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सूरविनय० 236

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