मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास पृ. 51

मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास

7. अभिमान कैसे छूटे ?

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हौं तो सदा खर को असवार, तिहरोइ नामु गयंद चढ़ायो ।।[1]

मैं कितना अयोग्य था, पर आपकी कृपा ने कितना योग्य बना दिया! इसलिये भगवान् की कृपा की ओर देखो। हम जो कुछ बने हैं, अपनी बुद्धि, बल, विद्या, योग्यता, सामर्थ्य से नहीं बने हैं। जहाँ मन में अपनी बुद्धि, बल आदि से बनने की बात आयी, वहीं अभिमान आता है कि हमने ऐसा किया, हमने वैसा किया। इस अभिमान से बचने के लिये भगवान को पुकारो। अपने बल से नहीं बच सकते, प्रत्युत भगवान् की कृपा से ही बच सकते हैं। भगवान् की स्मृति समस्त विपत्तियों का नाश करने वाली है- ‘हरिस्मृतिः सर्वविपद्विमोक्षणम्’।[2]

इसलिये भगवान को याद करो, भगवान् का नाम लो, भगवान् के चरणों की शरण लो। उनके सिवाय और कोई रक्षा करने वाला नहीं है। भगवान् के बिना संसार मात्र अनाथ है। भगवान के कारण से ही संसार सनाथ है। चलती चक्की में आकर सब दाने पिस जाते हैं, पर जिस कील के आधार पर चक्की चलती है, उस कील के पास जो दाने चले जाते हैं, वे पिसने से बच जाते हैं- ‘कोई हरिजन ऊबरे कील माकड़ी पास’। इसलिये प्रभु के चरणों की शरण लो और प्रभु को पुकारो, इसके सिवाय अभिमान से बचने का कोई उपाय नहीं है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कविताव्ली, उत्तर० 60
  2. श्रीमद्भा० 8। 10। 55

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