मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास पृ. 41

मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास

6. संसार का असर कैसे छूटे ?

Prev.png

आपने अबतक कई शरीर धारण किये, पर सब शरीर छूट गये, आप वही रहे। शरीर तो यहीं छूट जायगा, पर स्वर्ग या नरक में आप जाओगे, मुक्ति आपकी होगी, भगवान् के धाम में आप पहुँचोगे। तात्पर्य है कि आपकी सत्ता (स्वरूप) शरीर के अधीन नहीं है। अतः शरीर के रहने अथवा न रहने से आपकी सत्ता में कोई फर्क नहीं पड़ता। अनन्त ब्रह्माण्ड हैं, अनन्त सृष्टियाँ हैं, पर उनका आप पर सत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता। केश-जितनी चीज भी आप तक नहीं पहुँचती। ये सब मन-बुद्धि तक ही पहुँचती हैं। प्रकृति का कार्य मन-बुद्धि से आगे जा सकता ही नहीं। इसलिये अनन्त ब्रह्माण्डो में केश-जितनी चीज भी आपकी नहीं है।

आपके परमात्मा हैं और आप परमात्मा के हो। साधन करके आप ही परमात्मा को प्राप्त होंगे, शरीर प्राप्त नहीं होगा। इसलिये साधन करते हुए ऐसा मानना चाहिये कि हम निराकार हैं, साकार (शरीर) नहीं हैं। आप मकान में बैठते हैं तो आप मकान नहीं हो जाते। मकान अलग है, आप अलग हैं। मकान को छोड़कर आप चल दोगे। फर्क आपसे पड़ेगा, मकान में नहीं। ऐसे ही शरीर यहीं रहेगा, आप चल दोगे। पाप-पुण्य का फल आप भोगोगे, शरीर नहीं भोगेगा। मुक्ति आपकी होगी, शरीर की नहीं होगी। शरीर तो मिट्टी हो जायगा, पर आप मिट्टी नहीं होंगे। आपका स्वरूप गीता ने इस प्रकार बतया है-

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोअयं सनातनः ।।
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते ।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि ।।[1]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 2। 24-25

संबंधित लेख

मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः