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मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास
6. संसार का असर कैसे छूटे ?
बचपन से लेकर आज तक हमारे शरीर में इतना फर्क पड़ गया कि पहचान भी नहीं सकते, फिर भी हम वही हैं। बचपन में खेला करता था, बाद में पढ़ता था, वही मैं आज हूँ। शरीर वही नहीं है। शरीर तो एक क्षण भी नहीं रहता, निरन्तर बदलता रहता है। जो नहीं बदलता, वही साधक है। बदलने वाला साधक नहीं है। साधक योगभ्रष्ट होता है तो वह दूसरे जन्म में श्रीमानों के घर जन्म लेता है अथवा योनियों के घर जन्म लेता है। शरीर तो मर गया, जला दिया गया, फिर श्रीमानों अथवा योगियों के घर कौन जन्म लेगा? वही जन्म लेगा, जो शरीर से अलग है। इसलिये आप इस बात को दृढ़ता से स्वीकार कर लें कि हम शरीर नहीं हैं, प्रत्युत शरीर को जानने वाले हैं। इस बात को स्वीकार किये बिना साधन बढ़िया नहीं होगा, सत्संग की बातें ठीक समझ में नहीं आयेंगी। शरीर तो प्रतिक्षण बदलता है, पर आप महासर्ग और महाप्रलय होने पर भी नहीं बदलते, प्रत्युत ज्यों-के-त्यों एकरूप रहते हैं- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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