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मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास
5. सच्ची आस्तिकता
यहाँ शंका हो सकती है कि भगवान् में राजस-तामस भाव कैसे होते हैं? इसका समाधान है कि जैसे घर एक ही होता है, पर उसमें रसोई भी होता है और शौचालय भी अथवा एक ही शरीर शरीर में उत्तमांग भी होते हैं और अधमांग भी, ऐसे ही एक भगवान् में सात्त्विक भाव भी हैं और राजस-तामस भाव भी। संसार को मिथ्या मानकर केवल भगवान को सत्य मानना भी एक पद्धति (साधन-मार्ग) है। पर इस पद्धति में संसार बहुत दूर तक साथ रहता है। कारण कि त्याग करने से त्याज्य वस्तु की सूक्ष्म सत्ता बनी रहती है। इसलिये इस पद्धति में भगवान् से अभेद तो होता है, पर अभिन्नता (आत्मीयता) नहीं होती। परन्तु जो संसार रूप से भगवान् को देखते हैं, वे भगवान् के साथ अभिन्न हो जाते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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