ज्ञानेश्वरी पृ. 672

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-17
श्रद्धात्रय विभाग योग


ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्माणास्त्रिविध: स्मृत: ।
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिता: पुरा ॥23॥

जो अनादिपरब्रह्म समस्त जगत् का मूल कारण और विश्रान्ति का स्थल है, उसका नाम तो एक ही है, पर यह तीन प्रकार का है। वास्तव में परब्रह्म का न तो कोई नाम ही है और न कोई जाति ही है। परन्तु इस माया से उत्पन्न मोहान्धकार में परब्रह्म की कुछ परिकल्पना कराने के लिये उसका यह नाम सिर्फ पहचानने के लिये रख दिया है। जिस समय कोई बालक जन्म धारण करता है, उस समय वह अपने साथ अपना नाम लेकर नहीं आता; परन्तु आगे चलकर उसका जो नाम रखा जाता है, उस नाम के उच्चारण करते ही वह तुरन्त बोल उठता है। जब जगत् के क्लेशों से क्लेशित जीव अपने पीड़ाओं की चर्चा करने लगते हैं, तब उनके जिस नाम के उच्चारण करने पर ब्रह्मतत्त्व बोल उठता तथा उसका उत्तर देता है, वही यह सांकेतिक अर्थात् पहचान का नाम है। वेदों ने संसार पर अनुकम्पा करके अपनी दिव्य दृष्टि से एक ऐसा मन्त्र खोज निकाला है जिसके सहयोग से ब्रह्मतत्त्व वाणी के क्षेत्र में आ सकता है तथा उसके अद्वैत स्वरूप का व्यक्तिरूप से अनुभव किया जा सकता है। जिस समय उस एक मन्त्र का उच्चारण करके ब्रह्म का आह्वान किया जाता है, उस समय वह पीछे होने पर भी सम्मुख आ खड़ा होता है; परन्तु इस मन्त्र का ज्ञान उन्हीं लोगों को होता है, जो वेदरूपी पर्वत के शिखर पर उपनिषद् के अर्थरूपी नगर में परब्रह्म की पंक्ति में बैठे रहते हैं। सिर्फ यही नहीं, बल्कि स्वयं प्रजापति ब्रह्मा में जगत् की सृष्टि करने की जो सामर्थ्य है, वह जिस नाम की एक ही आवत्ति से उसे मिली हुई है वह भी यही नाम है। हे वीर शिरोमणि! सृष्टि का सृजन करने से पूर्व ब्रह्मा इतने व्याकुल हो गये थे कि वे मुझ ईश्वर को भुला बैठे थे और यही कारण है कि वे सृष्टि का सृजन भी नहीं कर सकते थे। पर जिस नाम की सहायता से उनमें सृष्टि का सृजन करने की शक्ति आयी, जिस नामार्थ का मनन करने के कारण और जिन तीन अक्षरों का जप करने के कारण ब्रह्मा को सृष्टि सृजन करने की सामर्थ्य प्राप्त हुई थी, वह यही मन्त्र है। फिर उन्होंने ब्राह्मण उत्पन्न किये, उन्हें वेदानुसरण का आदेश प्रदान किया तथा यज्ञकर्म को उनके निर्वाह का साधन बना दिया। तदनन्तर उन्होंने अनगिनत मनुष्यों की सृष्टि की। उन सबके निर्वाह के लिये ब्रह्मा ने तीनों लोकों का मानों दानपत्र लिख दिया। जिस नाम-मन्त्र के प्रभाव से ब्रह्मा ऐसा अद्भुत कार्य कर सके थे, अब तुम उसका स्वरूप सुनो।”

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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