श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-11
विश्वरूप दर्शन योग
अत: इस विश्वरूप के दर्शन का लाभ प्राप्त करके तुम अपने को श्लाघ्य मानो और इससे रत्तीभर भी भय मत करो। अपने मन में जरासा भी मत सोचो कि इससे बढ़कर और कोई दूसरी चीज भी हो सकती है। यदि अमृत से भरा हुआ समुद्र अचानक मिल जाय तो क्या कभी कोई डूबने के भय से उसका परित्याग कर देगा? अथवा यदि किसी व्यक्ति को स्वर्ण का पहाड़ दिखायी पडे तो क्या वह कभी यह समझकर उसकी अवहेलना करेगा कि यह इतना विशाल पर्वत यहाँ से कैसे ले जाऊँगा? यदि भाग्य से चिन्तामणि का आभूषण मिल जाय तो उसे कोई अंग पर धारण करेगा अथवा बोझ समझकर उसे फेंक देगा? क्या कोई कामधेनु का पालन-पोषण करने का सामर्थ्य मुझमें नही है, यह सोचकर उसका परित्याग कर देगा? यदि चन्द्रमा घर में आवे तो क्या कभी कोई उससे यह कह सकता है कि तुमसे हमारा शरीर जल गया, इसलिये तुम यहाँ से निकल जाओ? अथवा यदि घर में सूर्य प्रवेश करे तो क्या उससे कोई यह कहेगा कि दूर हटो, तुम्हारी परछाई पड़ती है और यदि कोई ऐसा कहे तो क्या उसका इस प्रकार का कथन बुद्धिमत्तापूर्ण समझा जायगा? इसी प्रकार मेरे विश्वरूप का परम तेजस्वी ऐश्वर्य आज आसानी से ही तुम्हारे हाथ लगा है तो तुम इससे व्याकुल क्यों हो रहे हो? पर तुम मूढ़ हो और यह बात तुम्हारी समझ में नहीं आ रही है। |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |