श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-2
सांख्य योग
अर्जुन ने उस समय इन सब बातों को बताकर श्रीकृष्ण से पूछा-“हे भगवन्! अब तो मेरी ये सब बातें आपकी समझ में आ गयीं न?” किन्तु अर्जुन के अन्तःकरण में इस बात का भी भरोसा नहीं होता था कि श्रीकृष्ण ने मेरी ये सब बातें मनोयोगपूर्वक सुनी हैं। इस बात का विचार होते ही अर्जुन बहुत व्यग्र हुआ और उसने फिर पूछा-“हे प्रभो! इसका क्या कारण है कि आप मेरी बातों पर गौर ही नहीं करते।”[1] न चैतद्विद्म:कतरन्नो गरीयो। हे भगवन! मेरे मन में जो-जो बातें थीं, वे सब-की-सब मैंने स्पष्ट रूप से आपसे कह दीं। अब यदि वास्तविक तत्त्व इससे कुछ पृथक् हो तो उसे आप ही जानें। यहाँ युद्ध के निमित्त हमारे समक्ष वे ही लोग उपस्थित हैं जिनके विषय में हमें यदि कहीं से भी यह भनक भी लग जाय कि इनके साथ हमारी शत्रुता है, तो हमें सचमुच में तत्क्षण प्राण छोड़ देने चाहिये। ऐसी दशा में यह बात मेरी समझ में नहीं आती कि अब ऐसे लोगों का वध करना उचित है? अथवा इनसे युद्ध न करना।[2] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |