गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
आचार्य धर्मकीर्ति :- यह नालन्दा विश्वविद्यालय के अध्यक्ष, आचार्य धर्मपाल के तथा दिंन्नाग के शिष्य ईश्वरसेन के शिष्य थे। धर्मकीर्ति ने न्याय-शास्त्र पर सात ग्रन्थ लिखे हैं। आचार्य धर्मकीर्ति का समय 635 ई. से 650 ई. माना जाता है। आचार्य गौडपाद :- गौडपाद आचार्य का समय 600 ई. से 670 ई. माना जाता है। यह शंकराचार्य के परम गुरु थे। गौडपाद आचार्य के शिष्य श्रीगोविन्द भगवत्पाद के शिष्य शंकराचार्य थे। गौडपाद आचार्य ने अद्वैत पर “माण्डूक कारिका”; “उत्तर गीता”, तथा “सांख्य कारिका” भाष्य लिखे। श्रीशंकराचार्य श्रीगोविन्द भगवत्पाद के शिष्य थे। गोविन्द भगवत्पाद श्री गौडपाद आचार्य के शिष्य थे। श्रीशंकराचार्य का प्रादुर्भाव काल 684 ई. से 716 ई. तक माना जाता है। उस समय उत्तर भारत में बौद्ध धर्म का महायान पन्थ कुछ अंश में प्रचलित था। गुप्त सम्राट तथा हर्षवर्द्धन के राजकीय प्रयासों से तथा उनके समय में होने वाले भागवत-धर्म के आचार्यों के उपदेशों से महायान वैष्णव-धर्म में परिवर्तित हो चुका था। बुद्ध द्वारा उपदिष्ट अनिश्वरवाद तथा वेदों की अमान्यता सारहीन व असत्य मान लिये गये थे, और ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य, शिव आदि वैदिक-देवताओं के समान बुद्ध की प्रतिमायें भी पूजी जाने लगी थीं। हीनयान पन्थ या तो लुप्त प्रायः हो चुका था या महायान पन्थ में मिल गया था। हीनयान और महायान दोनों आपस में मिल गये थे। यह ह्वेनसांग चीनी यात्री के वर्णन से ज्ञात होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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