गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
गौतम बुद्ध :- गौतम बुद्ध महावीर स्वामी के समसामयिक थे और यह कपिलवस्तु के शाक्य गणराज्य के अध्यक्ष शुद्धोधन के पुत्र थे। इनका जन्म ईसा से 566 वर्ष पूर्व लुम्बनी ग्राम में हुआ था। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। ज्ञान जिज्ञासु सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की आयु में गृहस्थ जीवन छोड़कर संन्यास ग्रहण कर लिया; 35 वर्ष की आयु में इनको ज्ञान प्राप्त हुआ और बुद्धत्व प्राप्त हो जाने के कारण वह “बुद्ध” कहलाने लगे। बुद्ध के आविर्भाव के समय भारतीय समाज अस्तव्यस्त हो चुका था, ज्ञान गौण हो गया था, निष्काम कर्म का स्थान काम्य-कर्म तथा फलासक्ति ने ग्रहण कर लिया था, तान्त्रिकों का प्रभाव था, यज्ञ-कर्म में निरीह पशुओं की बली निर्दयतापूर्वक चढ़ाई जाने लगी थी, अहिंसा-भाव प्राय: लुप्त हो चुका था; जिधर देखो उधर हिंसा ही हिंसा थी; चातुर्यवर्ण व्यवस्था बिगड़ चुकी थी, ब्राह्मण धर्माचरण छोड़कर पापाचरण को ही धर्म समझने लगे थे, बहु देववाद की आड में मानवता कुचली जा रही थी। व्यापक भागवत-धर्म को अनेक मतों में विभक्त कर मनमाना रूप दे दिया गया था, मानव समाज की प्रवृत्ति विषय भोग की ओर थी, मनुष्य का बुद्धि तथा ज्ञान तत्त्व विलुप्त हो चुका था और राष्ट्र व समाज की संघ-शक्ति छिन्न-छिन्न हो गई थी, भारत सैकड़ों राज्यों में विभक्त था जिनके शासक राजागण परस्पर सदैव लड़ा करते थे। इस छिन्न-भिन्न समाज व राष्ट्र-शक्ति को संगठित करने के लिए बुद्ध ने “सघं शरणं गच्छामि” का तुमुल नाद किया, संघ स्थापित किए और इसके प्रचार के लिए वीतराग भिक्षुकों के बड़े-बड़े संघ बनाए। इन संघों को सफल व स्थिर बनाने के अभिप्राय से बुद्ध ने धर्म का आश्रय लकर गीतोपदिष्ट “बुद्धो शरणमन्विच्छ” का रूपान्तर में “धम्मं शरणं गच्छामि” का सिद्धान्त घोषित किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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