गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 14

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


गीतोपदेश के पश्चात् भागवत धर्म की स्थिति
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बुद्ध का कहना था कि मनुष्य का अथवा जीव मात्र का जन्म लेना ही दुःख का कारण होता है क्योंकि सांसारिक वस्तुओं को भोगने की वासना व तृष्णा ही समस्त दुःखों का कारण होती है। यदि विषय-वासना व तृष्णा का अन्त-

1. सम्यक दृष्टि (विश्वास)
2. सम्यक संकल्प (विचार)
3. सम्यक वाक् (वचन)
4. सम्यक कर्म,
5. सम्यक जीविका,
6. सम्यक प्रयत्न,
7. सम्यक स्मृति,
8. सम्यक समाधि (ध्यान) आदि आठ साधनों द्वारा कर दिया जावे तो मनुष्य के दुःखों का अन्त हो जाता है और आवागमन से छुटकारा मिलता है। यह आठ आर्य सत्य कहलाती हैं।

बुद्ध कर्म व पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मानते थे, उनका कहना था कि कर्मानुसार ही फल मिलता है, तथा मनुष्य का वर्तमान, भविष्य, यह लोक और परलोक कर्म पर ही निर्भर होते हैं। कर्म के अनुसार ही पुनर्जन्म होता है, किन्तु पुनर्जन्म आत्मा का नहीं होता अहंकार का होता है।

गीतोपदिष्ट कर्म, जन्म-मरण, सुख-दुःख, तथा पुनर्जन्म को जैसे जैन मतावलम्बी मानते थे, वैसे ही गौतम बुद्ध भी मानते थे। पुनर्जन्म के विषय में बुद्ध का केवल यह मतभेद था कि वह पुनर्जन्म जीव या आत्मा का न होना मानकर अहंकार का होना मानते थे। यह भेद केवल बुद्ध ने अपने उपदेश में नवीनता या विशेषता प्रदर्शित करने के लिए तथा भोली जनता को भ्रम में डालने के लिये उत्पन्न किया अन्यथा पुनर्जन्म के विषय में यह सिद्धान्त है कि यह क्यों होता है और किसका होता है? सांख्य-शास्त्र, वैदिक-शास्त्र, उपनिषद, गीता शास्त्र आदि को ग्रहण कर जो मत जैनाचार्यों ने ऋषभदेव से महावीर स्वामी तक प्रतिपादित किया, उसमें यह भ्रमात्मक क्लिष्ट परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं थी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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