गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
बुद्ध का कहना था कि मनुष्य का अथवा जीव मात्र का जन्म लेना ही दुःख का कारण होता है क्योंकि सांसारिक वस्तुओं को भोगने की वासना व तृष्णा ही समस्त दुःखों का कारण होती है। यदि विषय-वासना व तृष्णा का अन्त- 1. सम्यक दृष्टि (विश्वास) बुद्ध कर्म व पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मानते थे, उनका कहना था कि कर्मानुसार ही फल मिलता है, तथा मनुष्य का वर्तमान, भविष्य, यह लोक और परलोक कर्म पर ही निर्भर होते हैं। कर्म के अनुसार ही पुनर्जन्म होता है, किन्तु पुनर्जन्म आत्मा का नहीं होता अहंकार का होता है। गीतोपदिष्ट कर्म, जन्म-मरण, सुख-दुःख, तथा पुनर्जन्म को जैसे जैन मतावलम्बी मानते थे, वैसे ही गौतम बुद्ध भी मानते थे। पुनर्जन्म के विषय में बुद्ध का केवल यह मतभेद था कि वह पुनर्जन्म जीव या आत्मा का न होना मानकर अहंकार का होना मानते थे। यह भेद केवल बुद्ध ने अपने उपदेश में नवीनता या विशेषता प्रदर्शित करने के लिए तथा भोली जनता को भ्रम में डालने के लिये उत्पन्न किया अन्यथा पुनर्जन्म के विषय में यह सिद्धान्त है कि यह क्यों होता है और किसका होता है? सांख्य-शास्त्र, वैदिक-शास्त्र, उपनिषद, गीता शास्त्र आदि को ग्रहण कर जो मत जैनाचार्यों ने ऋषभदेव से महावीर स्वामी तक प्रतिपादित किया, उसमें यह भ्रमात्मक क्लिष्ट परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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