गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
नकुल और सहदेव का जन्म:- दुर्वासा प्रदत्त मन्त्र को कुन्ती ने माद्री को भी बता दिया जिससे माद्री ने दोनों अश्विनी कुमारों को आमन्त्रित किया। फलस्वरूप माद्री के गर्भ से नकुल और सहदेव यमज [1] पुत्र उत्पन्न हुए। इस प्रकार पाण्डु के तीन पुत्र कुन्ती से और दो पुत्र माद्री से उत्पन्न हुए और ये पाँचों भाई पाण्डव कहलाये। इन पाँचों पुत्रों के उत्पन्न होने के कुछ समय पश्चात् एक दिन पाण्डु ने कामवश ऋषि-शाप की अवस्थिति में भी माद्री का आलिंगन कर लिया जो ऋषि के शाप के कारण पाण्डु की मृत्यु का हेतु बना। पाण्डु तत्काल शाप के कारण जलकर भस्म हो गया। माद्री भी अपने पति के साथ चिता में बैठकर सती हो गई। कुन्ती के साथ युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पाँचों बालक हस्तिनापुर चले गये और धृतराष्ट्र, भीष्म एवं कृपाचार्य के संरक्षण में दुर्योधनादिक धृतराष्ट्र, भीष्म एवं कृपाचार्य के संरक्षण में दुर्योधनादिक धृतराष्ट्र पुत्रों के साथ रहने लगे। सत्यवती, अम्बिका और अम्बालिका महर्षि द्वैपायन व्यास की सलाह से वन को चली गईं और वहीं कठोर तपस्या कर अन्त में सुगति को प्राप्त हुईं। हस्तिनापुर में पाँचों पाण्डवों ने धृतराष्ट्र के पुत्रों के साथ आचार्य द्रोण से वेद शिक्षा, युद्ध शिक्षा, तथा अस्त्र-शस्त्र शिक्षा सांगोपांग प्राप्त की और गुरु-दक्षिणा में राजा द्रुपद को हराकर उसका आधा राज्य द्रोण को दे दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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