गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 102

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


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युधिष्ठिर:-

धर्म का पुत्र युधिष्ठिर विलक्षण वेदान्ती, नीतिज्ञ तथा सत्यव्रती था, दानी, दयाशील, धर्मज्ञ एवं धार्मिक था जिसके कारण वह ‘धर्मराज’ कहलाता था। द्रौपदी के अतिरिक्त युधिष्ठिर ने शैव्यराज की कन्या “देविका” से विवाह किया जिससे “यौधेय” नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। युधिष्ठिर से द्रौपदी के “प्रतिबिम्ब” नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ।

भीम:-

पवनदेव-पुत्र भीम बड़ा ही बलवान वीर योद्धा था जिसमें दश-सहस्र हाथियों का बल था। भीम ने काशिराज की कन्या ‘बलन्धरा’ से विवाह किया जिससे “सर्ग” नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। हिडिम्ब राक्षस को मारकर उसकी बहिन “हिडिम्बा” से विवाह किया, जिससे महाबलवान एवं शक्तिशाली पुत्र “घटोत्कच” उत्पन्न हुआ। भीम से द्रौपदी के “सुतसोम” नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। बक राक्षस को भी भीम ने ही मारा था और बृहद्रथ के पुत्र तथा मगध एवं चेदिदेश के महापराक्रमी राजा जरासन्ध को मारकर उसके पुत्र सहदेव को अपना मित्र बना लिया था।

राजसूय यज्ञ के समय भीम ने पूर्व दिशा के समस्त राआजों को परास्त करके अपने अधीन बनाया था। दक्षिण के बलवान व शक्तिशाली राजाओं को भी हराकर पुलिन्द नगर पर पाण्डवों की विजय पताका लगा दी थी। चन्देरी के राजा शिशुपाल को परास्त किया और अयोध्या, उत्तर-कौशल तथा हिमालय की तराई के देशों को जीतकर पाण्डव राज्य के आधीन किया था।

शक, बर्बरकिरात राजाओं को परास्त कर अंगराज कर्ण को हराया। इसके पश्चात् अनूप देश के म्लेच्छों को हराकर समस्त पर्वतीय देश के प्रान्त को आधिपत्य में कर लिया था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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