गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 114

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दसवां अध्याय
विभूति-चिंतन
53. प्राणी स्थित परमेश्वर


21. और वह मोरǃ महाराष्ट्र में मोर बहुत नहीं है‚ परंतु गुजरात में उनकी विपुलता है। मैं गुजरात में था। रोज दस-बारह मील घूमने की मेरी आदत थी। घूमते हुए मुझे मोर दिखायी देते थे। जब आकाश में बादल छा रहे हों‚ मेघ बरसने की तैयारी हो‚ आकाश का रंग गहरा श्याम हो गया हो‚ तब मोर कूकता है। हृदय से खिंचकर निकलने वाली उसकी वह तीव्र पुकार एक बार सुनो‚ तो पता चलेǃ हमारा सारा संगीत-शास्त्र मयूर की इस ध्वनि पर ही रचा गया है। मयूर की ध्वनि ही षड्जं रौति। यह पहला ‘षड्ज’ हमें मोर से मिला। फिर घटा-बढ़ाकर दूसरे स्वर हमने बिठाये। मेघ की ओर गड़ी हुई उसकी वह दृष्टि‚ उसकी वह गंभीर ध्वनि और मेघ की गड़गड़ गर्जना सुनते ही फैलने वाली उसकी वह पुच्छ की छतरी। अहा हाǃ उसकी उस छतरी के सौंदर्य के सामने मनुष्य की सारी शान चूर हो जाती है। राजा-महाराजा भी सजते हैं‚ परंतु मयूर–पुच्छ की छतरी के सामने वे क्या सजेंगे? कैसा वह भव्य दृश्यǃ वे हजारों आंखें‚ वे नाना रंग‚ अनंत छटाए‚ वह अद्भुत सुंदर‚ मृदु‚ रमणीय रचना‚ वह बेल-बूटाǃ जरा देखिए तो उस छतरी को और उसमें परमात्मा भी देखिएǃ यह सारी सृष्टि इसी तरह सजी हुई है। सर्वत्र परमात्मा दर्शन देता हुआ खड़ा है‚ परंतु उसे न देखने वाले हम अभागे हैं। तुकाराम ने कहा– देव आहे सुकाळ देशीं‚ अभाग्यासी दुर्भिक्ष– ‘प्रभु’ सर्वत्र फला–फूला है; लेकिन अभागी को अकाल है।’ संतों के लिए सर्वत्र समृद्धि हैǃ परंतु हमारे लिए सर्वत्र अकाल है।

22. और मैं उस कोयल को कैसे भुलाऊं? किसे पुकारती है वह? गर्मियों में नदी-नाले सूख गये‚ परंतु वृक्षों में नव-पल्लव छिटक रहे हैं। वह यह तो नहीं पूछ रही है कि किसने उन्हें यह वैभव प्रदान किया, कहाँ है वह वैभवदाता? कैसी वह उत्कट मधुर कूकǃ हिंदू-धर्म में कोयल के व्रत का तो विधान ही है। स्त्रियां व्रत लेती हैं कि कोयल की आवाज सुने बिना वे भोजन नहीं करेंगी। कोयल के रूप में प्रकट परमात्मा का दर्शन करना सिखाने वाला यह व्रत है। वह कोयल कितनी सुंदर कूक लगाती है मानों उपनिषद ही गाती है। उसकी कुहू-कुहू तो कानों में पड़ती है? परंतु वह दिखायी नहीं देती। कवि वर्डस्वर्थ उसके पीछे पागल होकर जंगल-जंगल उसकी खोज में भटकता है। इंग्लैण्ड का महान कवि कोयल खोजता है? परंतु भारत में तो घरों की सामान्य स्त्रियां कोयल न दिखायी दे, तो खाना भी नहीं खातीं। इस कोकिलाव्रत की बदौलत भारतीय स्त्रियों ने महान कवि की पदवी प्राप्त कर ली है। जो कोयल परम आनंद की मधुर ध्वनि सुनाती है, उसके रूप में सुंदर परमात्मा ही प्रकट हुआ है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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