दसवां अध्याय
विभूति-चिंतन
53. प्राणी स्थित परमेश्वर
23. कोयल सुंदर‚ तो वह कौआ क्या असुंदर है‚ कौए का भी गौरव करो। मुझे तो वह बहुत प्रिय है। उसका व घना काला रंग‚ वह तीव्र आवाजǃ वह आवाज क्या बुरी है? नहीं‚ वह भी मीठी है। वह पंख फड़फड़ाता हुआ आता है‚ कैसा सुंदर लगता हैं छोटे बच्चों का चित्त खींच लेता है। नन्हा बच्चा बंद घर में नहीं खाता। बाहर आंगन में बैठकर उसे खिलाना पड़ता है और चिड़िया‚ कौए दिखाकर उसे कौर खिलाना पड़ता है। कौए के प्रति स्नेह रखने वाला वह बच्चा क्या पागल है? वह पागल नहीं‚ उसमें ज्ञान भरा हुआ है। कौए के रूप में व्यक्त परमेश्वर से वह बच्चा तुरंत एकरूप हो जाता है। माता चावल पर चाहे दही परोसे‚ दूध परोसे‚ या शक्कर परोसे‚ बच्चे को उसमें कोई आनंद नहीं। उसे आनंद है‚ कौए के पंख फड़फड़ाने में‚ उसके मुंह बिचकाने में। सृष्टि के प्रति छोटे बच्चों को इतना कौतूहल मालूम होता है‚ उसी पर तो सारी ‘ईसप-नीति’ रची गयी है। 'ईसप' को सर्वत्र ईश्वर दिखयी देता था। अपनी प्रिय पुस्तकों की सूची में मैं ईसप-नीति का नाम पहले रखूंगा‚ भूलूंगा नहीं। ईसप के राज्य में दो हाथों वाला’ दो पावों वाला मनुष्य ही अकेला नहीं है। उसमें सियार‚ कुत्ते‚ कौए‚ हिरन‚ खरगोश‚ कछुए‚ सांप‚ केंचुए- सभी बातचीत करते हैं‚ हंसते हैं। एक प्रचंड सम्मेलन ही समझिए नǃ ईसप से सारी चराचर सृष्टि बातचीत करती है। उसे दिव्य दर्शन प्राप्त हो गया है।
रामायण भी इसी तत्त्व पर‚ इसी दृष्टि पर खड़ी की गयी है। तुलसीदास जी ने राम की बाललीला का वर्णन किया है। राम आंगन में खेल रहे हैं। एक कौआ पास आता है‚ राम उसे धीरे से पकड़ना चाहते हैं। कौआ पीछे फुदक जाता है। अंत में राम थक जाते है; परंतु उन्हें एक युक्ति सूझती है। मिठाई का एक टुकड़ा लेकर कौए के पास जाते हैं। राम टुकड़ा जरा आगे बढ़ाते हैं‚ कौआ कुछ नजदीक आता है। इस तरह के वर्णन में तुलसीदास जी ने कई चौपाइयां लिख डाली हैं; क्योंकि वह कौआ परमेश्वर है। राम की मूर्ति का अंश ही उस कौए में भी है। राम और कौए की वह पहचान मानो परमात्मा से परमात्मा की पहचान है।
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