विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
त्रयोदश शतकम्
जिनका मुखचन्द्र अति सुन्दर है, जो इन्द्रनील मणि समूह की भाँति मनोहर है, जो दिव्य क्रीड़ाओ द्वारा गिरिराज गोवर्धन को आनन्द देने वाले हैं, प्रेमालिंगन प्राप्त करने के लिए विश्ववन्दिता लक्ष्मी भी जिनकी स्तुति करती हैं राधा निकुंज मन्दिर ही जिनकी निज विलास स्थली है, उन्हें श्रीकृष्ण को मैं नमस्कार करता हूँ।।75।।
है प्राणेश युगल! यदि कौतुक देखना चाहो, तो इस श्रीवृन्दावन में जो एक अपूर्व अलौकिक कदम्ब श्रेणी है, वहीं एक दिन कृपा कर चलियेगा- ये वचन किसी एक सखी के मुख से सुन कर तत्क्षणात् ‘‘चलो-चलो’’ यह कहकर उत्कण्ठा युक्त एक दूसरे का हाथ ग्रहण करके मुसकराते-मुस्कराते जो श्रीराधा-कृष्ण का असम्वृत वस्त्रों से जल्दी-जल्दी गमन करना है- वही हमारी रक्षा करे।।76।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज