विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
प्रथमं शतकम्
किसी दिव्य कोटि-कोटि रति-कामदेव रूप विशिष्ट (अनिर्वचनीय) विग्रह युगल की (श्रीराधा-कृष्ण की) स्वर्ण-नील-ज्योति से उद्भासित, अतीव अद्भुत काम-केलि-विलासादि के माधुर्य-सागर में निमग्न श्रीवृन्दावन के दर्शनों की मैं इच्छा करता हूँ।।20।।
इस संसार के विषयों में गाढ़ आसक्ति युक्त पुरुषों के मन को, परम वैराग्य के कारण जो पुरुष इस विषयों पर दृष्टिपात करने में ही अत्यन्त असहिष्णु हैं- उनके मन को, योग मार्ग में सम्यक् प्रकार उद्योगी जनों के मन को, केवल मात्र ब्रह्मानन्दरस में मग्न चित्त व्यक्तियों के मन को, और फिर श्री गोविन्द के चरणारविन्द में आविष्ट-चित्त भक्त वृन्दों के भी मन को यह श्रीवृन्दावन अपने गुण समूह से मोहित किये रखता है।।21।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज