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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
एकादश शतकम्
अहो! अतुलनीय आनन्दमय परमहंसगणों से सेवित एवं नित्य असीम प्रफुल्लित कमलों से शोभायमान इस उज्ज्वल सरोवर को त्याग करके यदि तुम कागादि से युक्त तथा कीचड़ युक्त अति क्षुद्र जलाशय की इच्छा करते हो, तो तुम अब हंस पदवी के योग्य नहीं हो।।88।।
हे कृपालु! तुम अद्भुत गुणों द्वारा उज्ज्वलतम, समदर्शी एवं सर्वश्रेष्ठ हो कर भी आज तक मेरे सामने बहुत देर तक स्थायी प्रकाशवान नहीं हुए हो, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि श्री वृन्दावन भूमि पर विलास परायण चिद्रसघन विग्रह धारण करने वाले तुमको किसी विलास रस ने अपने में तल्लीन कर रखा है।।89।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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