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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
एकादश शतकम्
श्रीवृन्दावन के तमालों से शोभित स्थान पर कोई चैतन्य हेमलता दीख रही है, वह फिर हेमपर्वत (स्तन) युगल धारण करती है और वहाँ अनेक अर्द्धचन्द्र (नखाघात) भी दीख रहे हैं।।68।।
हे सखी! कोई स्वर्णवर्णा सुललिता संचरणशीला पद्मिनी का (श्रीराधा का) ध्यान करते-करते एवं उसका दिनरात आस्वादन करने के लिये रसोल्लास युक्त किरण प्रसारण करके चौसठ कला-प्रवीण कोई एक नीलचन्द्रमा (श्रीवृन्दावन चन्द्र) श्रीवृन्दावन के दिव्यकुंजों के गुहर के अंधकार में खेल कर रहा है।।69।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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