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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
एकादश शतकम्
हे श्रीवृन्दावन! त्रिभुवन को जय करने वाले अस्त्र को धारण करने वाली लक्ष्मी (श्रीराधा जी) प्रायशः तुम्हारे यहाँ पुष्प धनुष को ही हाथ में रखती हैं तथा अति कोमल एवं उज्ज्वल अंगों वाली वह श्रीवृषभानु-नन्दिनी स्वर्ण लता की शोभा का तिरस्कार करती हुई विराजमान हैं, सुन्दर पद्म समूह ही आपका मुख है, सुन्दर कुन्दकलियों का समूह आपकी दन्तपंक्ति है, बन्धूक पुष्प आपके अधर हैं, नील कमल आपके नेत्र हैं और पल्लव आपके हाथ हैं।।66।।
लीलाविलास परायण श्री युगलकिशोर की नवलताकुञ्ज में किसी एक सखी ने- यह चमत्कारिणी विद्युत लता ही है, किन्तु श्रीराधा नहीं है और वह भी कोई मेघ ही प्रकाशित हो रहा है, गोपाधिराज-नन्दन (श्री श्यामसुंदर) नहीं है।’ इस प्रकार किसी अन्य सखी को बताते हुए श्रीराधा जी को आनन्द देकर सन्तुष्ट किया।।67।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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