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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
एकादश शतकम्
अब आगे के श्लोकों में अर्थात श्लोक 16 से 31 श्लोंक पर्यन्त कुलक हैं, जिसमें श्रीकृष्ण द्वारा श्रीवृन्दावन-स्तुति वर्णित है।
(श्रीकृष्ण वचन) - सुन्दर केशयुक्ता (श्रीराधा जी) की केश शोभा मोरों के पुच्छ विस्तार में वर्तमान हैं, उनकी अलकावलि मैं सुन्दर मधुकरों में देखता हूँ, उनके सुन्दर मुस्कानयुक्त मुखचन्द्र की कला ही प्रस्फुटित स्वर्ण कमलों के कोश में विराजमान है और उनकी नयनकोर चकित हरिणी की नेत्र चातुरी एवं माधुर्य का जन्मस्थान है।।16।।
श्रीराधा जी की सुन्दर नासिका मनोहर तिलपुष्प में उनके अधरों की शोभा वान्धुलीपुष्प में, और दन्त पंक्तियों की आभा कुन्दकलियों में, तथा सुचारु हास्य श्वेत कमल में प्रतिभात हो रहा है, अनुपम तनु लतावृन्द में एवं स्तनमुकुलद्वय की शोभा स्तवकित सुन्दर कुट्मलादि में एवं उनकी बाहुवल्ली मृणालों में विकसित हो रही है।।17।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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