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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
परम पावन, असीम माधुर्य्य मण्डित, उज्ज्वल चिन्मय रस घन मूर्त्ति श्रीराधिका मदनमोहन के केलि कुंज समूह से सुरंजित एवं सुमनोहर ‘‘श्रीवृन्दावन’’ नाम का मैं चिरकाल तक जप करता हूँ।।37।।
श्रीहरि के प्रेमसार से अति गम्भीर श्रीराधा की नित्य परिचर्या कर, बाधाओं की कुछ चिन्ता न कर, शरीर की अपराधों से भी रक्षा मत कर, आर्त्त होकर भी श्रीराधा-रसोन्मत श्रीवृन्दावन को त्याग करके कहीं मत जा। हे अज्ञ! कहीं मत दौड़ क्योंकि श्रीवृन्दावनधाम अति दुर्लभ है।।38।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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