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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
महानन्द साम्राज्य के मूल श्रीवृन्दावन की भूमि पर जो मृत्युपर्यन्त वास करने की प्रतिज्ञा कर चुका है, उस किसी महापुरुष की मैं वन्दना करता हूँ, क्योंकि श्रीराधा जी एवं रसिक चूड़ामणि श्रीकृष्ण अपने सेवकों में से उसे अन्यतम जानकर ‘‘वह कैसा है?’’ इस विषय पर परस्पर परामर्श करते हैं।।35।।
जिनकी मन्द मुस्कान की छटा में कोटि-कोटि चन्द्रों का उदय होता है भृकुटी कटाक्षादि से विचित्र परमाश्चर्य जनक कोटि-कोटि कामदेव उत्पन्न होते हैं, जिनके मन्त्रणा एवं आक्षेप-वाक्यों द्वारा शीतलानन्द माधुर्यधारा का प्रवाह होता है। ऐसे श्रीवृन्दावन विहारी श्रीराधाकृष्ण युगलकिशोर का भजन कर।।36।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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