विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
सुन्दर अंगुलियों से नील अलकावलि सुविन्यस्त करते हैं, स्वर्ण-कमल के समान प्रफुल्ल वदन को बार-बार आघ्राण करते हैं, श्रीराधा को अंक में बैठाकर चिबुक ऊँचा उठाकर पुनः पुनः उसके बिम्बाधर को चुम्बन करते हैं, ऐसे जो मदनमूर्त्ति मधुपति हैं- उनका स्मरण कर।।31।।
अहो! मधुरातिमधुर दिव्य गौरश्याम युगलकिशोर सर्वांगों में उत्थित मदन-पीड़ायुक्त होकर अवश हो, असीम अपार रति-क्रीड़ा सागर में अतिशय विहार करते हैं- श्रीवृन्दावन के नव निकुजों में स्थित इन युगल किशोर का उज्ज्वलभाव से तुम भजन करो।।32।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज