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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
अहो! श्रीवृन्दावन-वासियों के दर्शन कर या उनका स्पर्श कर अन्यत्र जाकर जो पुरुष उनका ध्यान प्रणाम करते हैं तथा उनके गुणों का कीर्त्तन व श्रवण करते हैं, अथवा उनकी पद-धूलि को मस्तक पर धारण करते हैं, अथवा जो पुरुष किसी भाँति भी श्रीवृन्दावन की सम्बन्धित वस्तु से सम्बन्धित हैं- उन्हें पावन श्रीवृन्दावन परम पद प्रदान करता है।।29।।
नयन वाक्य एवं गति में महाश्चर्य रीति धारण करके तथा महाप्रेमावेश में उन्मत्त मदन के वशीभूत होकर मधुर मूर्त्ति धारण करके हाय! सहज-किशोर गौरश्यामयुगल जहाँ आनन्द उठा रहे हैं- वह यही श्रीवृन्दावन है।।30।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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