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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
जो तप्त स्वर्णवत् सुन्दर गौरवर्ण अंगलता धारण कर रही हैं, जो नवीन यौवनमण्डित अपार लीला एवं कान्तियुक्त हैं, जिनकी वेणी विशाल जंघाओं पर खेल रही है जो आश्चर्यमय कान्तियुक्त हैं, एवं नव स्वर्णपर्वत अर्थात् सुमेरु के द्वारा भी दर्शन करने स्तनों की शोभा धारण कर रही हैं-।।40।।[1]
नव नव रस-सार आस्वादन करक जिनका मुख सुहास्ययुक्त है, नवीन नवीन रस में क्रीड़ा करने वाले विशाल नेत्र खंजनवत् शोभित हो रहे हैं, जिनकी सुवलित शोभापूर्ण बाहु-लताओं में सुन्दर कंकणों सहित दिव्य बाजूबन्द विराजमान हैं- ।।41।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 40 से 45 श्लोक तक कुलक है
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