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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
जिनके कानों में दिव्य रत्नमयकुण्डल शोभित हैं, जिनकी नासिका मे सुन्दर स्वर्ण-रत्न-खचित मुक्ता लटक रहा है, जिनके कम्बुकण्ठ में अनेक प्रकार के स्वर्ण हार चमक रहे हैं, जिनके केयूर एवं शिखा में अनेक माणि-माणिक्य शोभा दे रहे हैं।।42।।
जिनकी अँगुलियों में सुन्दर मणिजटित मुद्रिकाएं शोभित हैं, जो स्तनों की कान्ति से उद्भासित चोलिका पहर रही हैं, जिनका मध्यदेश (कोटि) परम रमणीय एवं मुष्टिग्राह्य (अति पतला) है, जिनका नितम्देश उज्ज्वल मणिमय मेखला से एवं चरण कमल मनोहर नूपुरों से विभूषित हैं- ।।43।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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