विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
हे मूर्ख! स्त्री, पुत्र, देह, घर सम्पत्ति आदि का विश्वास मत कर, एक क्षण भी विचार न करके श्रीवृन्दावन की ओर पाँव बढ़ा।।59।।
श्रीराधाकृष्ण के विलास से रंजित लतागृहों एवं तड़ागों से, श्रीकालिन्दी के किनारों पर स्थित चन्दन-वनादिकों से, एवं श्रीगिरिराज की सुन्दर-सुन्दर गुफाओं से जो सुशोभित है, जो एकमात्र सौभाग्य एवं चमत्कार की वर्षा करता है, तथा जो नित्य स्वतन्त्ररूप से वर्धनशील परम आश्चर्य की समृद्धि से पूर्ण है ऐसा श्रीवृन्दावन मेरी जीवन- औषध है।।60।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज