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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
शरीर को सदा श्रीवृन्दावन भूमि में स्थिर रख, मन को श्रीवृन्दावन रसिकयुगल (श्रीराधाकृष्ण) के निकट भजन में लगा, उनकी लीला गान में निरन्तर वाणी का प्रयोग कर एवं प्रेम से व्याकुल कानों को उनके कथामृत से तृप्त कर।।61।।
हे वृन्दावन! अपना एकमात्र क्षुद्र तृण कृपाकर मुझे दान करो, जो तुम्हारे बीच विराजमान नव-नव कामोत्काण्ठायुक्त निर्जन वनपथ में विहार करने वाले उन गौरश्यामवर्ण अद्भुत रसिकयुगल के चरणकमलों के स्पर्श का सुख अनुभव करता रहता है।।62।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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