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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
समस्त जीवों के दोषों तथा गुणों को न कहीं सुनता हुआ और न ही ग्रहण करता हुआ, सब वृन्दावनवासी प्राणियों में गुरु-बुद्धि से दण्डवत प्रणाम करता हुआ, सब अभिमान छोड़ कर एवं निरन्तर परम निष्किञ्चन भाव से श्री राधा कृष्ण के प्रेमानन्द में अश्रु बहाता हुआ कोई पुण्यात्मा ही श्रीवृन्दावन में वास करता है।।53।।
क्रन्दन एवं आर्त्त स्वर से भूमि पर लोट-पोट होते-होते प्राण बन्धु को दण्डवत प्रणाम करते करते दाँतों में तृण धारण कर कृपा कटाक्ष के लिए कोटि कोटि दीन वचन उच्चारण करता हुआ श्री वृन्दावन के वृक्ष-वृक्ष के नीचे एकान्त-वासी होकर हाथ पर कपोल रख कर आँसू बहाता हुआ जो कोई दिन-रात व्यतीत करता है, वह अति अनन्य एवं धन्य है।।54।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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