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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
निरन्तर शोकाश्रु बहाता हुआ, एक ग्रास मात्र आहार में भी अरुचिवाला, उन्मत्त, बद्ध, हत तथा पर्वत की भाँति अचल एवं सर्वसंग रहित, परम निष्किञ्चनता की पराकष्ठा-प्राप्त, अत्यन्त उत्कण्ठा से श्री राधा कृष्ण के चरणारविन्दों की शोभा का जो ध्यान करता है, ऐसा कोई (भाग्यवान पुरुष भी) श्रीवृन्दावन में विराजमान है।।55।।
[[राधा|श्री राधा]-कृष्ण-निज्र्जन कुञ्ज शय्या पर विराजमान हैं- उनके कण्ठ में सुगन्धित माला अर्पण कर, उनक सर्वांगों पर सुललित चन्दन लेपन कर, श्री मुख में ताम्बूल प्रदान कर एवं मृदु मधुर वीजन के द्वारा उन्हें सुखी कर। वे परस्पर गाढ़ आलिंगनपूर्वक सुख से शयन कर रहे हैं,- उनके चरण कमलों की सेवा कर- इस प्रकार श्री युगलकिशोर परिचर्या कर।।56।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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